ऋतु पर्व – वसंत पंचमी
वर दे, वीणावादिनि वर दे !
प्रिय स्वतंत्र-रव अमृत-मंत्र नव
भारत में भर दे !
वर दे, वर दे वीणावादिनी वर दे
प्रस्तुत पँक्तियाँ सूर्यकांत त्रिपाठी निराला द्वारा रचित किया गया है, माँ, मां वीणा वादिनी को नमन
बसंत पंचमी हर साल हिंदू कैलेंडर के माघ महीने में मनाई जाती है। यह माघ महीने के पांचवें दिन मनाया जाता है जो आमतौर पर ग्रेगोरियन कैलेंडर के फरवरी/मार्च में पड़ता है। प्राचीन काल में कामदेव के राजमहल में बसंत पंचमी मनाई जाती थी। पश्चिम बंगाल इस त्योहार को सरस्वती पूजा के रूप में मनाता है, पंजाब और बिहार पतंगों के त्योहार के रूप में। यह नेपाल में भी मनाया जाता है।
वसंत ऋतु आते ही प्रकृति का कण-कण खिल उठता है। मानव तो क्या पशु-पक्षी तक उल्लास से भर जाते हैं। हर दिन नई उमंग से सूर्योदय होता है और नई चेतना प्रदान कर अगले दिन फिर आने का आश्वासन देकर चला जाता है। यों तो माघ का यह पूरा मास ही उत्साह देने वाला है, पर वसंत पंचमी का पर्व भारतीय जनजीवन को अनेक तरह से प्रभावित करता है। प्राचीनकाल से इसे ज्ञान और कला की देवी मां सरस्वती का जन्मदिवस माना जाता है। जो शिक्षाविद भारत और भारतीयता से प्रेम करते हैं, वह इस दिन मां शारदे की पूजा कर उनसे और अधिक ज्ञानवान होने की प्रार्थना करते हैं।
डॉ o रंजना मिश्रा
अध्यापक
सेठ आनंदराम जैपुरिआ स्कूल गाजियाबाद – वसुंधरा